लेखनी-कालाबाजारी-कविता -14-Feb-2022
(कालाबाजारी)
✍🏻 मेरी कलम गद्दार लिखेगी ✍🏻
करनी थी आपदा से लड़ाई
करने लगे है आपदा में कमाई,
ऐसे गद्दारों को ग़द्दार ही लिखूंगा
बार-बार ही सही हर बार लिखूंगा,
इस आपदा को वो अवसर समझ बैठा
कोरोना मरीजों को मजबूर समझ बैठा,
मरीजों में लहू की लहर जमने लगी है
जमते लहू के थप्पों से "जाने" जाने लगी है,
बच्चें-बुढ्ढे और जवान सब अपनी जान गवाने लगे है
ऐसे में ये काली कमाई करने वाले अपनी जेबें भरने लगे है,
फल से लेकर दवाइयां और बेड से लेकर ऑक्सीजन
यहां तक कि मंहगें दामों में बिक रहे है आज इंजेक्शन,
लगता है ऐसे की मानो लहू से चुपड़ी चपातियां
और
ये रुपया-पैसा नहीं जैसे नोंच खा रहे है बोटियां,
करने वाले काला-बाजारियों का जिस्म-ज़मीर जैसे मर गया है
धिक्कार है ऐसे गद्दारो को जो मद्दत की जगह लुटेरों है,
मैं और मेरी कलम तुम पर "थू" लिखेगी
एक बार नहीं हजार बार गद्दार लिखेगी,
ये मत समझो गद्दारो हिसाब तो तुम्हें भी देना पड़ेगा
यहां नहीं तो उसको एक दिन हिसाब तो देना पड़ेगा !!
✍🏻 चेतन दास वैष्णव ✍🏻
गामड़ी नारायण
बाँसवाड़ा
राजस्थान
स्वरचित-मौलिक मेरी रचना
Seema Priyadarshini sahay
14-Feb-2022 09:39 PM
बहुत खूबसूरत
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वैष्णव चेतन"चिंगारी"
15-Feb-2022 07:01 PM
ह्र्दयतल आभार आपका आदरणीया🙏🙏
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